नजीर बन जाए सजा : वीरेन्द्र खागटा

आज जब भारत में सामाजिक, आर्थिक और तकनीक के अलावा विकास के तमाम आयामों की बात हो रही है, देश की नाक के ठीक नीचे हुई बलात्कार की एक दुस्साहसिक घटना पूरे तंत्र की जर्जरता की ओर इशारा करती है। यह हमारे राजनीतिक, सामाजिक, न्यायिक और नैतिक तंत्र का खोखलापन ही है कि किसी को किसी की परवाह नहीं है। नेताओं को लोगों की परवाह नहीं है और लोगों में कानून का कोई डर नहीं है।

हैरत इस बात पर है कि यह घटना राष्ट्रीय राजधानी में हुई  है, जहां न सिर्फ यूपीए और राज्य में शीला दीक्षित की सरकार है, बल्कि दोनों कांग्रेस की सरकारें हैं, इसलिए इनमें आपसी तालमेल होना ही चाहिए। अब अगर यह कहा जाएगा कि बसों के लाइसेंस खत्म कर देंगे, तो इससे कुछ होने वाला नहीं है। ऐसी घटनाओं के लिए सीधे तौर पर पुलिस को भी दोषी नहीं ठहराया जा सकता। सभी जानते हैं कि पुलिस सरकार के इशारे पर चलती है।

सबसे अहम बात यह है कि ऐसे अपराधियों को कठोर से कठोर सजा दी जानी चाहिए। सजा तय करते समय यह ध्यान रखना बेहद जरूरी है कि वह जुर्म के अनुपात में हो। यानी जितना संगीन जुर्म, उतनी ही बड़ी सजा। बलात्कार के जघन्यतम मामलों में मृत्युदंड की व्यवस्था भी की जा सकती है। इन बलात्कारियों के लिए कठोर सजा इसलिए भी जरूरी है कि समाज में संदेश जा सके। ऐसा कोई कानून बनाया जाए, जिसमें तत्काल वीजा की भांति एक महीने की डेडलाइन हो, जिसमें ऐसे मामलों को निपटाया जा सके। इनके लिए अलग से फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाए जाने चाहिए।

ऐसी घटनाओं से महिलाओं के मनोबल में भी गिरावट आती है। अभिभावकों की ओर से लड़कियों पर दबाव बनाया जाने लगता है कि वे रात में घर से न निकलें या अपने कपड़ों पर ध्यान दें। लेकिन क्या लड़कों पर ऐसी पाबंदियां लगाई जा सकती हैं? अगर नहीं, तो लड़कियों पर इनका क्या औचित्य है? कुछ लोगों ने शीला दीक्षित से इस्तीफे की मांग की है, लेकिन इससे क्या नतीजा निकलेगा? ऐसे हादसे तो पूरे देश में हो रहे हैं। पर सरकार को ऐसे मामलों में अपेक्षित संवेदनशीलता तो दिखानी चाहिए। सरकार गंभीर न हो, तो कानून कितना ही कठोर क्यों न हो, व्यवहार में प्रभावी नहीं हो सकता।

ऐसा नहीं है कि इंडिया गेट पर प्रदर्शन, फेसबुक पर चलाए जा रहे अभियान या मोमबत्ती जलाने का कोई महत्व नहीं है, लेकिन दिक्कत यह है कि लोगों की याददाश्त कमजोर होती है। मजा तब है, जब लोग विरोध के इसी जुनून को वोट डालने के समय भी दिखाएं। पर ऐसा हो नहीं पाता। ऐसा होता, तो नरेंद्र मोदी तीसरी बार गुजरात के मुख्यमंत्री नहीं बन पाते। मनुष्य को संचालित करने के लिए डर जरूरी है। विदेशी अपने देश में जुर्माने के डर से च्युइंगम को सड़क पर नहीं थूकते, लेकिन भारत आने पर उन्हें किसी का डर नहीं रह जाता। लोगों के भीतर बलात्कार जैसे घृणित अपराधों के लिए कठोर सजा का डर पैदा करना होगा। यह तो सख्त कानूनों के जरिये ही संभव है।

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